कोंडा रेड्डी जनजाति 

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Konda ReddY tribe’s indigenous knowledge of Indian laurel tree proves resourceful

हाल ही में कोंडा रेड्डी जनजाति ने आंध्र प्रदेश के वन अधिकारियों के समक्ष  अपने स्वदेशी ज्ञान को साझा किया।

प्रमुख बिंदु :-

  • इस जनजाति ने आंध्र प्रदेश के वन अधिकारियों को अपने स्वदेशी ज्ञान के द्वारा  पापिकोंडा राष्ट्रीय उद्यान में स्थित एक भारतीय लॉरेल वृक्ष (टर्मिनलिया टोमेंटोसा) के अन्दर पानी होने की सूचना दी। 

कोंडा रेड्डी जनजाति :-

  • यह भद्राचलम (आंध्र प्रदेश)की सबसे आदिम जनजातियों में से एक हैं। 
  • यह अपने पारंपरिक ज्ञान तथा संसाधनों के किये जानी जाती है।
  • यह एक विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) के अंतर्गत आती है।
  • यह जनजाति गोदावरी क्षेत्र में पापिकोंडा पहाड़ी श्रृंखला में ओडिशा , आंध्र प्रदेश, तेलंगाना आदि राज्यों में निवास करती है। 
  • यह समाज की मुख्यधारा से कटे हुए रहते हैं।

भाषा:-

  • इनकी मातृभाषा एक अद्वितीय उच्चारण के साथ तेलुगु है।
  • धर्म: ये हिंदू धर्म के स्थानीय देवताओं के की पूजा अर्चना करते हैं।

राजनीतिक संगठन:-

  • इनकी सामाजिक नियंत्रण की अपनी एक संस्था है जिसे ‘कुल पंचायत’ कहा जाता है।
  • प्रत्येक गाँव का एक पारंपरिक मुखिया होता है जिसे ‘पेद्दा कापू’ कहा जाता है।
  • मुखिया का पद वंशानुगत होता है और मुखिया ग्राम देवताओं का पुजारी भी होता है।

मुख्य व्यवसाय:

  • यह जनजाति वर्तमान में परंपरागत काश्तकारियों को स्थानांतरित करके कृषि और बागवानी व्यवसाय कर रहे हैं। 
  • इस आदिवासी समूह की आजीविका के अन्य स्रोत लकड़ी वन उत्पादों का निर्माण और बांस की टोकरी बनाना आदि है।
  • यह पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं जैसे कि बांस, बोतल लौकी और बीज से बने घरेलू लेखों का उपयोग के लिए जनि जाती हैं ।

भारतीय लॉरेल वृक्ष:-

  • इसका वैज्ञानिक नाम फिकस माइक्रोकार्पा है। 
  • यह एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष है। 
  • इस वृक्ष को इंडियन सिल्वर ओक के रूप में जाना जाता है। 
  • इसकी लकड़ी का व्यावसायिक मूल्य बहुत अत्यधिक है। 

विशेषता :-

  • यह वृक्ष सर्दी के मौसम में अपने तने में पानी को स्टोर कर लेता है, ताकि गर्मी के मौसम में पानी की कमी होने पर इसका इस्तेमाल किया जा सके।
  • इस कारण से इन वृक्षों को फायर प्रूफ वृक्ष भी कहा जाता है।
    • इस वृक्ष के पानी में तेज़ गंध होती है तथा इस पानी का स्वाद खट्टा होता है। 
  • यह भारतीय जंगलों में पायी जाने वाला एक अद्भुत वृक्ष है।
  • इस वृक्ष को वन अधिकारियों द्वारा संरक्षण प्रदान किया गया है।
  • यह मुख्य रूप से एशिया, पश्चिमी प्रशांत द्वीप समूह और ऑस्ट्रेलिया के कई हिस्सों में पाया जाता है।

विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) :-

  • यह भारत में स्थित जनजातीय समूहों में सबसे अधिक असुरक्षित समूह है। 
  • इन समूहों में आदिम लक्षण, भौगोलिक अलगाव, कम साक्षरता, शून्य से नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि दर और पिछड़ापन आदि पाया जाता है।
  • यह समूह भोजन के लिए शिकार और कृषि पर निर्भर रहते हैं। 
  • भारत सरकार द्वारा 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) की पहचान की गई है। 

आदिम जनजातीय समूहों (PTGs) का निर्माण:– 

  • वर्ष 1973 में ढेबर आयोग (Dhebar Commission ) द्वारा आदिम जनजातीय समूहों (Primitive Tribal Groups- PTGs) को एक अलग श्रेणी के रूप में वर्गीकृत कर उन्हें विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) कर दिया गया।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, ओडिशा में PVTG की सबसे ज्यादा संख्या 866,000 है। 
  • इसके पश्चात् मध्य प्रदेश (609,000) और आंध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित) में 539,000 संख्या में हैं।
राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशपीवीटीजी PVTG
अंडमान और निकोबार द्वीप• महान अंडमानीज़
• जरवा
• ओंगे 
• सेंटिनल
दादरा और नगर हवेली• ढोडिया
• कोकना
गुजरात• बजाज होल्डिंग
झारखंड• असुर
• बिरहोर
• पहाड़ी
• खरियाकोरवा
कर्नाटक• जेनु कुरुबा
• कोरगा
• येरवा
केरल• कोरगा
• कुरुम्बा
• कट्टुनायकन
• चोलानैकेन
• पनिया
मध्य प्रदेश• बैगा
• भरिया
• भिलाला
• कोरकू
• मवासी
• सहरिया
महाराष्ट्र• बजाज होल्डिंग
• कटकारी
• कोलम
• मारिया गोंड
• मदिया गोंड
• ठाकुर
मणिपुर• लामगांग
• माओ
• मारम
• पुरम
मिजोरम• चकमा
• हमार
• लाइ
• मारा
• पावी-लुई
• सेन्थांग
ओडिशा• बोंडो पोराजा
• दिदायि
• डोंगरिया खोंड
• पहाड़ी खरिया
• जुआंग
• कुटिया कोंध
राजस्थान • भिलाला
• दामोर
• सहरिया
• तड़वी भील
सिक्किम• भूटिया-लेप्चा
• डुकपा
तमिलनाडु• इरुला
• कट्टुनायकन
• पलियान
• शोलगा
• टोडा
त्रिपुरा• रियांग
उत्तर प्रदेश• बिरहोर
• पहाड़ी कोरवा
• कमरिया
पश्चिम बंगाल• लोढ़ा
• टोटो

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